मणिपुर में नेपाली नाट्य-परम्परा और प्रवृत्ति


भूमिका

        मणिपुर राज्य में नेपाली साहित्य की शुरुआत सन् 1893 में तुलाचन आले द्वारा रचित मणिपुरको लड़ाईको सवाई से हुई है। इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज दर्जनों रचनाकार विविध विधाओं के माध्यम से मणिपुर में नेपाली साहित्य का स्वरूप गढ़ने में अपना योगदान दे रहे हैं। यह ज्ञात है भारत की स्वतंत्रता से पूर्व ही मणिपुर की भूमि में नेपाली नाटक रचना परंपरा का सूत्रपात हो चुका था। प्रारंभ में धार्मिक विषयों पर आधारित नाटकों का प्रचलन था। मणिपुर में नेपाली नाटक का सूत्रपात 1942 में होने के प्रमाण प्राप्त होते हैं। प्रारंभिक नाटकों की रचना केवल मनोरंजन के उद्देश्य से की जाती थी। मणिपुर में बड़ा दशैं (दुर्गा पूजा) और तिहार (दिवाली) के अवसर पर नाटक लिखने और मंचन की परंपरा लंबे समय तक चलती हुई दिखाई देती है। आज भी ग्रामीण स्तर पर यह परंपरा जीवित है। विपूल मात्रा में नेपाली नाटकों की रचना एवं मंचन होने के वावजूद भी इन्हें पुस्तककाकार रूप देने में रचनाकारों एवं साहित्यिक संस्थाओं ने कोई जागरूकता नहीं दिखाई। यह खेद की बात है।
        मणिपुर में नेपाली नाटक को विशिष्ट रूप देने एवं आगे बढ़ाने का काम पत्रकार, कवि, गीतकार और नाटककार कमल थापा 'प्रकाश' ने किया है। इस क्षेत्र में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। उन्होंने लगभग एक दर्जन नाटकों का प्रणयन करके मणिपुर में नेपाली नाटक परंपरा को एक ठोस धरातल प्रदान किया है। 
        किसी भी स्थान विशेष पर भाषा-साहित्य के व्यवहार के पीछे किसी भाषा-भाषी विशेष के समाज के अस्तित्व का होना अनिवार्य होता है। मणिपुर में नेपाली भाषी गोर्खा समाज के उदय के पीछे कई ऐतिहासिक कारण रहे हैं। इसका एक कारण असम राइफल्स और आज़ाद हिंद फौज है। सेना में कार्यरत गोर्खा सैनिकों में कुछ साहित्य प्रेमी भी थे। उनका साहित्य प्रेम मणिपुर के गोर्खा समाज में नाट्य परंपरा के सूत्रपात का कारण बना।
        इम्फाल में स्थित चौथा असम राइफल्स मणिपुर नेपाली नाटक की जन्मभूमि थी। दुर्गापूजा के अवसर पर अस्थायी मंच का निर्माण करके एकांकी, नाटक, प्रहसन या लघु नाटकों का मंचन किया जाता था। ये नाटक मौलिक न होकर धर्मशास्त्र पर आधारित होते थे। धर्मशास्त्रों की कहानियों, प्रसंगों आदि को नाटकीय आवरण प्रदान करके प्रस्तुत करने की परंपरा सालों तक चली।
        नाटक के क्षेत्र में मेजर हेमबहादुर लिम्बू का स्थान अग्रणी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे मणिपुर के गोर्खा समुदाय के पहले नाटककार थे। 1942 में दुर्गा पूजा के अवसर पर लिंबू द्वारा निर्देशित नाटक राजा हरीश्चंद्र का चौथे असम राइफल्स में सफलतापूर्वक मंचन किया गया था।
        इसकी सफलता ने उनके मनोबल को मजबूत किया और उसके बाद उन्होंने क्रमशः कृष्णजन्म, सीताहरण और सती रानक देवी जैसे नाटकों का सफलतापूर्वक मंचन किया। इसके बाद, यह तथ्य भी सामने आया है कि प्रतापचंद्र राई द्वारा निर्देशित नाटक जयद्रथ वध भी उस समय बहुत चर्चित रहा।
        ऊपरोक्त नाटककारों के बाद चौथे असम असम राइफल्स में टी.बी चंद्र सुब्बा मौलिक नाटककार के रूप में दिखाई देते हैं। उन्होंने कालिया दमन और बहिनीको लागि जैसे ​​नाटकों का सफल मंचन किया। कालिया दमन कृष्णचरित्र पर आधारित नाटक था जबकि बहिनीको लागि नितांत मौलिक नाटक था। इस प्रकार टी.बी चंद्र सुब्बा मणिपुर के नेपाली भाषा में लिखने वाले प्रथम मौलिक नाटककार के रूप में उभरे।
        1942 में शुरू हुई नेपाली नाट्य-परंपरा 1950 तक असम राइफल्स जैसे फौजी छावनियों जारी रही। इसके बाद मणिपुर के अन्य स्थानों में भी नाटकों के मंचन का काम शुरू हुआ। दुर्गापूजा और दिवाली के अवसर पर एकांकी, हास्य-व्यंग्य या अन्य नाटकों के मंचन की परंपरा लंबे समय तक चलती रही।
        कांग्लातोंग्बी निवासी स्वर्गीय कमल थापा 'प्रकाश' ने मौलिक नेपाली नाटक के क्षेत्र में महत योगदान दिया है। अपने जीवन के कम समय में, उन्होंने दस से अधिक मौलिक नाटकों का प्रणयन और मंचन किया। उनके असामयिक निधन के साथ, यह परंपरा सुस्त पड़ गई। ये सभी नाटक पांडुलिपियों तक सीमित रहे। वर्तमान में गोर्खा ज्योति प्रकाशन ने कमल थापा द्वारा रचित त्याग शीर्षक नाटक प्रकाशित किया है और अन्य नाटकों को प्रकाशित करने की योजना भी बनाई जा रही है।

कमल थापा प्रकाश

        1958 में चिंगमैरोंग नेपाली बस्ती, इम्फाल में जन्मे, कमल थापा कम उम्र से ही विचारशील थे। कमल थापा 'प्रकाश' ने 70 के दशक में नाटक के क्षेत्र में प्रवेश किया। उनके सभी नाटक सामाजिक यथार्थ पर आधारित हैं। सामाजिक विघटन, सामाजिक संबंधों, पारिवारिक समस्याओं, ग्रामीण राजनीति, आदर्श राजनीति आदि के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है। 1973 में उनका पहला मौलिक नाटक सिन्दूर कांग्लातोंग्बी में मंचन किया गया था। इस नाटक ने कमल थापा को एक सफल नाटककार के स्थान पर प्रतिष्ठित किया। इसके बाद उन्होंने अन्य नाटकों का लेखन और मंचन किया। हारजीत (1975), सुस्केरा (1977), निश्चल स्मृति, ममता, कलंक, घर-घर को कथा आदि का मंचन बड़ी धूमधाम से किया गया। 1978 में अखिल मणिपुर गोर्खा छात्र संगठन, मणिपुर के तत्वावधान में उन्होंने पाओना बाज़ार, इम्फाल में स्थित रूपमहल थिएटर में स्वर्गीय लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा रचित नाटक मुनामदन का मंचन किया। इसके सफल मंचन के बाद, इस नाटक की माँग मणिपुर के अन्य क्षेत्रों में हुई। इसे कोलोनी, असम राइफल्स, साइकुल आदि क्षेत्रों में बड़े उत्साह के साथ प्रदर्शित किया गया। इस तरह कमल थापा 'प्रकाश' स्वयं को नेपाली नाटक की दुनिया में एक सफल नाटककार के रूप में स्थापित करने में सफल हुए। उनके द्वारा रचित नाटक ममता अधूरा रह गया है। इस नाटक के पूरा होने से पहले वे बीमार पड़ गए और सदा के लिए इस दुनिया से विदा हो गए। इस प्रकार, मणिपुर के नेपाली नाटक साहित्य ने 1991 में एक चमकता सितारा खो दिया, जिसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई है। 

त्याग
त्याग नाटक कमल थापा का पहला प्रकाशित पूर्णांक नाटक है। यह अक्तूबर 2015 में गोर्खा ज्योति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया। यह पारिवारिक समस्याओं पर आधारित  नाटक है। इसे 20 दृश्यों में विभाजित किया गया है लेखक ने पात्रों के माध्यम से वास्तविक जीवन की घटनाओं को चित्रित किया है। इसकी भाषा सरल, सहज नेपाली है। पात्रों के स्तर अनुरूप कहीं-कहीं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी मिलता है। संवाद संक्षिप्त और घटनाक्रम को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं। इसमें मंचन सभी गुण पाए जाते हैं।

त्याग नाटक समय और स्थिति को ध्यान में रखते हुए रचित है। इसके माध्यम से एक आदर्शवादी परंपरा की स्थापना करने का प्रयास किया गया है। 70 के दशक के मणिपुरी नेपाली भाषी जनजीवन की सामाजिक रीति-रिवाज, मान्यता आदि नाटक का वर्ण्य विषय है। इसमें शिक्षा को अंग्रेजी परंपरा के पर्याय के रूप में मानने वाली एक ऐसी युवा पीढ़ी का चित्रण किया गया है, जो ड्रग्स या अन्य कुप्रवृत्ति को सभ्यता मान कर चलती है।

महेश पौड्याल

        महेश पौड्याल मणिपुर के दूसरे कुशल नाटककार हैं। उन्होंने 1990 में इरांग, ​​मणिपुर में दाजूको कर्तव्य नाटक लिखा और मंचन किया। उन्होंने 1999 में देशको माटो, और 2001 में दाइजो कांग्लातोंग्बी, शांतिपुर में मंचित नाटक हैं। उन्होंने प्लेटो का नाटक एलेगोरी आफ द केभ (2002) का नेपाली अनुवाद और मंचन किया। चंगा (2008), आमा न हुँदा एक साँझ (2011) उनकी प्रकाशित नाट्य रचनाएँ हैं।

फुटकर नाटक

        मणिपुरी नेपाली समाज में कई ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने नाटक रचना में योगदान दिया है। इन नाटकों का मंचन विशेष रूप से दुर्गा पूजा के अवसर पर किया जाता है। ये नाटक केवल मंच तक सीमित दिखाई देते हैं। यहाँ ऐसे नाटककारों और उनके द्वारा रचित नाटकों का नामोल्लेख करने का प्रयास किया गया है।
        मणिपुर का कांग्लातोंग्बी प्रांत शुरू से ही नेपाली साहित्य का गढ़ रहा है। इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में नाटक लिखे और मंचित किए गए। ऐसे नाटकों में चूड़ामणि चापागाईं का प्रहारको चोट (1984), नौलो बिहान (1985), वेदना (1987), आ-आफ्नो व्यथा (1988), तारासिंह बिष्ट रचित आँसू (1984), फेरि खाँडो पखाल्नै पर्छ (1986) शामिल हैं। चूड़ामणि खरेल का अर्चना (1986), रोशन कुमार उप्रेती का त्याग एउटा प्रेमकथा (2001), लक्ष्मण शर्मा का उपहार (2002), समर्पण (2005), शिवकुमार बस्नेत रचित महिमा (2003) दुर्गा पूजा के अवसर पर मंचित नाटक हैं। 
        कई नाटकों का मंचन कौब्रुलैखा गाँव में भी किया गया। ऐसे नाटकों में पं. नारायणप्रसाद शर्मा द्वारा रचित हरिश्चंद्र (1972) और अमर प्रेम (1976), छोरीको जन्म हारेको कर्म (1978), प्रेम दाहाल रचित बदला (1884), गौरीमान भट्टाराई का ख़ूनको कसम (1991) प्रमुख मंचित नाटक है।
        मुकुली गाँव से नंदलाल बजागाईँ रचित आँसू सरिको हाँसो, अकाल मृत्यु, अभिलाषा, पवित्र प्रेम, अनुसन्धान, बिदाई, स्व. लक्ष्मीप्रसाद मैनाली रचित प्रतिशोध (1993), तोरीबारी से शिवलाल भण्डारी, इरांग से मणिकुमार पौड्याल, गोविन्द न्यौपाने र टिकाराम पौड्याल,गोमा शर्मा आदि के द्वारा रचित नाटकों का मंचन समय-समय पर किया जा चुका है।  
        प्रकाश सिवाकोटी 90 के दशक में कालापहाड़ क्षेत्र में उभरने वाले एक अच्छे नाटककार हैं। सिवाकोटी खुद कहते हैं कि उनके कई नाटकों का मंचन हर साल होता आ रहा है। उनके सभी नाटकों में सामाजिकता का पुट विद्यमान हैं।  

निष्कर्ष

 सन् 1893 में तुलाचन आले द्वारा शुरू की गई मणिपुर की नेपाली साहित्यिक परंपरा संतोषजनक गति से आगे बढ़ती हुई दिखाई देती है। अन्य विधाओं की तुलना में नाट्य विधा में भारी न्यूनता देखी जाती है। भले इस क्षेत्र में रचित सभी नाटक पुस्तक के रूप में प्रकाश में नहीं आए, लेकिन असंख्य नाटकों के प्रणयन और मंचन से इनकार नहीं किया जा सकता। गोर्खाज्योति प्रकाशन, नेपाली साहित्य परिषद मणिपुर, सिरोई सिर्जना परिवार जैसी साहित्यिक संस्थाएँ ऐसे नाटकों की खोज, संकलन और प्रकाशन के कार्य में अवश्य अपनी अहम भूमिका निर्वहन कर सकती हैं। आशा है इस क्षेत्र में और भी संस्थाएँ आगे आएँगी और नेपाली नाटक साहित्य के विकास में योगदान देंगी।


सन्दर्भ ग्रंथ

1.  भारतीय नेपाली साहित्यको विश्लेषणात्मक इतिहास –
गोमा दे.शर्मा, शोधग्रन्थ
,
मणिपुर  विश्वविद्यालय, 2009

2.  मणिपुरमा नेपाली जनजीवन, मुक्ति गौतम – नेपाली साहित्य परिषद, 1999

3. मणिपुरमा
नेपाली साहित्यः एक अध्ययन – डा. गोमा दे. शर्मा
, गोर्खाज्योति प्रकाशन, 2016

 4. मौखिक
श्रोत
रामप्रसाद पौडेल, चुड़ामणि चापागाईं, शिवकुमार बस्नेत (प्रधान- काङ्ग्लातोंग्बी ग्राम पञ्चायत) तारासिंह विष्ट आदि।


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Author

  • डॉ.गोमा देवी शर्मा (अधिकारी)

    डॉ.गोमा देवी शर्मा (अधिकारी) गुवाहाटी, असम की निवासी हैं और पेशे से एक शिक्षिका हैं। इन्होंने हिंदी विषय में स्नातक, स्नात्कोत्तर, बीएड एवं पीएचडी मणिपुर विश्वविद्यालय से और नेपाली में गुवाहाटी विश्वविद्यालय के आइडोल केंद्र से की है। ये मूल रूप से नेपाली, हिंदी और अंग्रेजी में लिखती हैं। ये पूर्वोत्तर भारत की एक हिंदी सेवी हैं। ये भारतीय नेपाली साहित्य की अध्येता हैं। इनकी हिंदी तथा नेपाली में कई पुस्तकें प्रकाशित हैं

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