(मणिपुर
की भूमि में आत्माहुति देने वाले गोर्खा शहीद)
भारत का इतिहास हजारों सपूतों के बलिदानी रक्त से रंगा हुआ है। कई देशभक्तों ने अपनी मातृभूमि की परतंत्रता की बेड़ी को काटने के लिए हँसते-हँसते फाँसी का फंदा चूम लिया। कईयों ने अपना घर-बार छोड़ा। अनगिनत शूर-वीरों ने परतंत्रता के विरुद्ध कालापानी की सजा को स्वीकार कर लिया। असंख्य देशभक्त क्रूर अंग्रेजों की गोलियों के शिकार बने। कई जघन्य से जघन्य सजा के हकदार बने। कई बलिदानियों के शौर्य की गाथा भारत के इतिहास में दर्ज है पर असंख्य गुमनाम वीर भी हैं, जिन्हें भारतीय इतिहास ने अपने किसी भी पन्ने में इन्हें स्थान देना मुनासिब नहीं समझा। भारतीय बच्चों ने मुगलों को पढ़ा, बड़े-बड़े लॉर्डों को रटा और परीक्षाएँ पास कर गए मगर अपने शहीदों की जानकारी से वे आज तक वंचित रह गए। ऐसे ही एक वीर थे निरंजन सिंह छेत्री। भारत के इतिहास में इस जाँबाज सूबेदार का नाम हमेशा से गुमनाम रहा है। आज मैं इस नरसिंह की जीवन गाथा पर प्रकाश डालकर आज़ादी के अमृत पर्व पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पण करना चाहती हूँ।
निरंजन सिंह छेत्री मणिपुर की भूमि में शहीद होने वाले प्रथम नेपाली भाषी गोर्खा थे। उनका जन्म सन् 1851 को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम दरिया सिंह छेत्री था। बचपन से ही वे बड़े जोशीले और शूरवीर थे। उस समय ब्रिटिश साम्राज्य की जड़े भारत में दूर दूर तक गहराती जा रही थीं। देशी राजाओं ने धीरे-धीरे अंग्रेजों के आगे घुटने टेकने शुरु कर दिए थे। प्लासी के युद्ध (1757) के बाद अंग्रेजी शासन भारत में सबसे ताकतवर सत्ता के रूप उभर रही थी। बढ़ता हिंदू मराठा साम्राज्य मराठा प्रांत में सिमटने को मज़बुर हुआ। धीरे-धीरे देश की लगाम अंग्रेजों के हाथों में चली गई। अब अंग्रेज गाँव-गाँव से देशी नौजवानों को सैनिक जीवन के सुख-चैन के सपने दिखाकर अंग्रेजी सेना में भर्ती करने लगे, तो देशी नौजवानों की एक बड़ी जमात सेना में भर्ती हो गई। युवा निरंजन सिंह छेत्री भी 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री में बतौर सिपाही भर्ती हो गए। उनका रेजिमेंट कछार में तैनात था जो छह सप्ताह बाद भंग कर दिया गया था। रजिमेंट भंग होने के बाट वे अपने पैतृक गाँव चले गए पर वहाँ उनका मन नहीं लगा। कुछ समय बाद वे बर्मा (वर्तमान म्यानमार) की राजधानी रंगून गए। रंगून में उनकी मुलाकात एक मणिपुरी युवक से हुई। उनके साथ वे मणिपुर आए। मणिपुर तब तक एक स्वतंत्र रियासत था। युवक ने उनका परिचय मणिपुर के युवराज टिकेंद्रजीत से कराया। युवराज टिकेंद्रजीत उनके व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुए और उन्हें एक सैनिक के रूप में नियुक्त किया। थोड़े ही दिनों में उन्होंने टिकेंद्रजीत का दिल जीत लिया इसलिए उन्हें सेना के सूबेदार के पद पर पदोन्नति दी गई।
भारत में अंग्रेजों का दबदबा बढ़ता जा रहा था। एक के बाद एक भारतीय राज्यों को इस्ट इंडिया कंपनी शासन में मिलाया जा रहा था। उस समय मणिपुर दरबार आंतरिक कलह से अशांत था। महाराजा चंद्रकीर्ति के बेटों के बीच सिंहासन की लड़ाई हो रही थी। टिकेंद्रजीत की राजनैतिक सूझबूझ और समझदारी से प्रभावित अधिकांश अधिकारी और जनता उन्हें युवराज बनाना चाहते थे। उधर उनके सौतेले भाई महाराज सूरचंद्र इसके पक्ष में नहीं थे इसलिए टिकेंद्रजीत के समर्थकों ने महाराज के खिलाफ विद्रोह कर दिया। दरबारी कलह से निपटने के लिए तत्कालीन महाराज सूरचंद्र ने अंग्रेजों से हाथ मिलाया इससे अंग्रेजों के लिए मणिपुर दरबार में हस्तक्षेप करने में आसान हो गया।
अंग्रेज मौके की तलाश में थे। उनके लिए सूरचंद्र का प्रस्ताव किसी कीमती उपहार से कम नहीं था। महाराजा की सहायता के लिए ब्रिटिश सरकार ने सैनिकों का एक बड़ा जत्था मणिपुर में भेजा। अंग्रेजों ने सूरचंद्र को फिर से मणिपुर की राजगद्दी पर बिठाने और अदालत में पेशी के बहाने टिकेंद्रजीत को गिरफ़्तार करने की गुप्त योजना बनाई। टिकेंद्रजीत को ब्रिटिश की चाल की भनक लग गई और वे बीमारी के बहाने अदालत में पेश ही नहीं हुए। ब्रिटिश सरकार की योजना को मणिपुर दरबार ने खारिज कर दिया।
इसके परिणाम स्वरूप ब्रिटिश फौज ने 24 मार्च 1891 युवराज टिकेंद्रजीत के भवन एवं राजमहल पर तीन दिशाओं से आक्रमण कर दिया। हमले के दौरान
निरंजन सिंह छेत्री मणिपुरी की सेना के कमांडर थे। अपने सहयोगियों के साथ उन्होंने ब्रिटिश सेना को बड़ी क्षति पहुँचाई। राजमहल और किले की रक्षा में उन्होंने पाँच
ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया। अंग्रेजी फौज को पीछे हटना पड़ा। इसके बाद अंग्रेजों ने पुन: तीन दिशाओं (कोहिमा, सिलचर और तमू) से मणिपुर पर आक्रमण कर दिया। मणिपुरी सेना के अन्य सैन्य अधिकारी इस आक्रमण का करारा जवाब देने के लिए दल बल के साथ निकल पड़े। अंग्रेजों का लक्ष्य टिकेंद्रजीत को बन्दी बनाना था। इस स्थिति से अवगत होकर निरंजनसिंह क्षेत्री युवराज टिकेंद्रजीत की सुरक्षा में तैनात रहे।
25 अप्रैल 1891 (तुलाचन आले रचित मणिपुरको लड़ाईको सवाई के अनुसार) को मणिपुरी और ब्रिटिश सेना के बीच खोंगजोम नामक स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ जिसे इतिहास में एंग्लो – मणिपुरी युद्ध के नाम से जाना जाता है। युद्ध में हजारों सैनिक शहीद हुए। आधुनिक हथियारों से संपन्न अंग्रेजी सेना के सामने मणिपुरी सेना निरंतर कमजोर पड़ती जा रही थी। इस विरोध को और कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने खाद्य सामग्री बंद कर दी। भूखे और लाचार सैनिक वीरता के साथ अंतिम साँस तक मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ते रहे। सैन्य बल कमजोर पड़ते ही अंग्रेज सैनिकों ने राज दरबार को घेर लिया। दरबार में घुसकर मणिपुर दरबार को लूट लिया। 27 अप्रैल 1891 तक अंग्रेजों ने मणिपुर दरबार पर पूर्ण रूप से कब्जा कर लिया। शासन सत्ता हथियाने के बाद अंग्रेजों ने मणिपुरी सेना के कई बहादुर सैनिकों को बंदी बनाया और फाँसी पर चढ़ा दिया।
निरंजन छेत्री, चोंगथामिया, टिकेंद्रजीत, पाओना व्रजवासी, थाङगल जनरल, काजाओ सिंह जमादार, चिरई नागा जैसे वीरों पर अंग्रेजों ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया। सुबेदार निरंजन सिंह छेत्री पर अंग्रेजों का विरोध करने, स्थानीय सैनिकों को पूरे दिन अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित करने और भारी अंग्रेजी सैन्य बल को हताहत करने के आरोप में मृत्युदंड का एलान कर दिया। 8 जून, 1891 को कङ्ला के पश्चिमी द्वार पर उन्हें फाँसी दी गई और युवराज टिकेंद्रजीत को 13 अगस्त, 1891 को फाँसी पर लटका दिया गया। निरंजन सिंह मातृभूमि की रक्षा एवं स्वाधीनता ह्तु शहीद हो गए। उन्होंने आत्माहुति देकर संपूर्ण मणिपुर तथा गोर्खा समुदाय के लिए देश मर-मिटने का एक मिसाल कायम किया। उनके द्वारा जलाई गई आत्माहुति की परंपारा की ज्वाला उनके पीछे भी धधकती रही। स्वाधीनता संग्राम में असंख्य गोर्खा वीरों ने देश के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को चूमा और मातृभूमि का ऋण चुकाया और यह क्रम आज भी जारी है।
लंबे समय तक निरंजनसिंह छेत्री का परिचय मणिपुर तथा भारत के इतिहास से ओझल रहा। इनका परिचय ढूँढ निकालने में मणिपुर स्थित गोर्खा छात्र संघ, अन्य सामाजिक संगठन, मुक्ति गौतम, ड़ॉ. गोमा शर्मा, भवानी अधिकारी, घनश्याम आचार्य जैसे लेखकों ने बड़ी भूमिका निभाई है। भारतीय गोर्खा परिसंघ, मणिपुर शाखा ने सन् 2021 में इम्फाल जिला अंतर्गत काङलातोंग्बी ग्राम में शहीद निरंजन सिंह छेत्री की प्रतिमा स्थापित किया है जिसे राज्य के मुख्यमंत्री श्री एन. बीरेन ने
एक भव्य कार्यक्रम में गत 8 मार्च 2021 के दिन लोकार्पित किया है। बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेसन, मणिपुर ने शहीद निरंजन सिंह छेत्री का परिचय दसवीं
कक्षा के पाठ्यक्रम में समावेश करके वर्तमान एवं भावि पीढ़ी को उनके विषय में जानने का अवसर प्रदान किया है। प्रत्येक वर्ष आज 8 जून को मणिपुरी गोर्खा समाज में
राज्यव्यापि स्तर पर शहीद दिवस के रूप में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। मणिपुर के अन्य शहीदों के साथ निरंजनसिंह छेत्री को भावभीनी श्रद्धांजलि प्रकट की
जाती है।
संदर्भ स्रोत
1. डा. गोमा देवी शर्मा
– मणिपुरमा नेपाली साहित्य: एक अध्ययन,
प्रथम संस्करण – 2016
2. Dr Purushottam Bhandari – WHO IS WHO OF GORKHA MARTYRS OF INDIA (Period 1891 -2020 ), Vol. 1, 2021.
3. Ghanashayam Acharya – Saheed Niranjan Singh Chhetry, 2021
4. MANIPUR “WHO IS WHO” 1891, Edited by Smt. Kh. Sarojini Devi, Deputy Director (Archives), Published by Manipur State Archives, Directorate of Art and Culture, Government of Manipur.
5. मुक्ति गौतम – मणिपुरमा नेपाली जनजीवन – 1999
6.स्रष्टा – भारतीय नेपाली शहीद विशेषांक – पश्चिम सिक्किम साहित्य प्रकाशन, गेजिंग विशेषांक – वर्ष 21, अंक 47, मार्च – अप्रैल 2000.
沖ドキ!トロピカル
黃金守護神(特殊大賞燈);
キャラクターの個性が際立っており、ストーリーに引き込まれます。
ルパン三世 ロイヤルロード金海に染まる黄金神殿
https://barisozbek8.com/tags/p%E9%AD%94%E6%B3%95%E5%B0%91%E5%A5%B3%E3%83%AA%E3%83%AA%E3%82%AB%E3%83%AB%E3%81%AA%E3%81%AE%E3%81%AF-2%E4%BA%BA%E3%81%AE%E7%B5%86-ver-199
サウンドエフェクトが迫力満点で、プレイ中に盛り上がります。特にバトル時が楽しい。
CRさくらももこ劇場コジコジ2
北斗の拳 暴凶星 法則
ミリオンゴッド
CRサイボーグ009VSデビルマン
戦姫絶唱シンフォギア
I couldn’t read the content you have written. Can you provide it in Englidh please
I’m not that much of a internet reader to be honest but your blogs really nice, keep it
up! I’ll go ahead and bookmark your site to come
back later on. Cheers
Having read this I believed it was extremely enlightening.
I appreciate you finding the time and energy to put this
information together. I once again find myself spending a significant
amount of time both reading and leaving comments.
But so what, it was still worthwhile!
Strands Hint I really like reading through a post that can make men and women think. Also, thank you for allowing me to comment!
Sportsurge This is my first time pay a quick visit at here and i am really happy to read everthing at one place
you are in reality a good webmaster The website loading velocity is amazing It sort of feels that youre doing any distinctive trick Also The contents are masterwork you have done a fantastic job in this topic
Its like you read my mind! You seem to know a lot about this,
like you wrote the book in it or something. I think that you could
do with some pics to drive the message home a bit, but other than that, this is excellent blog.
A fantastic read. I will definitely be back.
Awesome! Its really amazing article, I have got much clear idea concerning from this post.